विजुअल डिस्प्ले यूनिटक्या होता है – मॉनीटर | What is Visual Display Unit – Monitor – Best Visual Display Unit In Hindi
विजुअल डिस्प्ले यूनिट क्या होता है – इस आउटपुट डिवाइस को मॉनीटर भी कहा जाता है। देखने में यह टेलीविजन (TV) की भांति होता है परन्तु TV की बनावट ऐसी होती है कि एक लाइन में 40 अक्षर से अधिक अक्षर होने पर वे अस्पष्ट होने लगते हैं। कम्प्यूटरों के मॉनीटर विशेष प्रकार के बने होते हैं जिनमें एक लाइन में 80 अक्षर भी स्पष्ट प्रदर्शित होते हैं। ये आकार में टेलीविजन से कुछ छोटे होते हैं क्योंकि कार्य करते समय इन्हें TV की भांति अधिक दूरी पर नहीं रखा जा सकता।
टेलीविजन की भांति मॉनीटर पर भी चमक (Brightness), सन्तुलन (Contrast) व रंग (Colour) के कन्ट्रोल लगे होते हैं जिससे चित्र-10-विजुअल डिस्प्ले यूनिट अर्थात् मॉनीटर प्रदर्शन को सही ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। कम्प्यूटर व मॉनीटर में सूचना के परस्पर आदान-प्रदान के लिए मॉनीटर में एक कई तारों वाला केबल लगा होता है, जिसके दूसरे सिर पर लगा प्लग कम्प्यूटर की सिस्टम यूनिट के पीछे की ओर लगे एक सॉकेट में लगा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त मॉनीटर को विद्युत ऊर्जा (Power) अलग से देनी होती है; जिसका तार अलग होता है।
कई सिस्टम यूनिट्स में मॉनीटर का पावर देने के लिए भी पीछे की ओर एक सॉकेट लगा होता है। इस सॉकेट के उपयोग से ये सुविधा रहती है कि केबल सिस्टम यूनिट के पावर स्विच को बन्द करने से मॉनीटर भी स्वतः ही ऑफ हो जाता है। यदि यह सॉकेट उपलब्ध न हो तो मॉनीटर को 230 वोल्ट की पावर सप्लाई अलग से दी जाती है। मॉनीटर दो प्रकार के होते हैं, मोनोक्रोम (Monochrome) अर्थात् एक रंग के, व कलर (Colour) अर्थात् रंगीन। पाठ्य कार्यों एवं कई प्रकार के चित्र बनाने के लिए मोनोक्रोम मॉनीटरों का ही उपयोग किया जाता है।
कुछ समय पहले के मॉनीटर अंधेरे पर्दे पर हरे रंग के अक्षर प्रदर्शित करते थे, परन्तु अब ‘सॉफ्ट व्हाइट’ (Soft White) अर्थात् सौम्य श्वेत प्रकार के पटलों का प्रचलन है। इसमें अक्षर तथा चित्र श्याम-श्वेत में ही दिखाए जाते हैं। रंगीन मॉनीटरों में टैक्स्ट अथवा ग्राफिक आउटपुट (Output) अपने वास्तविक रंगों में प्रदर्शित होते हैं।
विजुअल डिस्प्ले यूनिट क्या होता है – मॉनीटर
इन्टरनेट के विस्तार के कारण वर्तमान समय में रंगीन मॉनीटर अधिक प्रचलन में हैं। मॉनीटर के रंगीन होने पर इन्टरनेट से सर्किंग के दौरान वेबसाइट अपने वास्तविक रंगों में मॉनीटर स्क्रीन पर प्रदर्शित होती है। रिजॉल्यूशन अर्थात् स्क्रीन पर होने वाले प्रदर्शन की स्पष्टता किसी भी डिस्प्ले यूनिट का महत्वपूर्ण लक्षण होता है। अधिकांश डिस्प्ले यूनिट्स में स्क्रीन पर प्रदर्शन छोटे-छोटे बिन्दुओं के चमकने से होता है। ये छोटे-छोटे बिन्दु पिक्सल्स (Pixels) कहलाते हैं। यह शब्द Picture तथा Element दो शब्दों का संयुक्त रूप है।
विजुअल डिस्प्ले यूनिट की स्क्रीन पर यूनिट मेजरमेंट में पिक्सल्स की संख्या ही रिजॉल्यूशन का परिचायक है। स्क्रीन पर जितने अधिक पिक्सल्स होंगे, स्क्रीन का रिजॉल्यूशन उतना ही अधिक होगा और स्क्रीन पर होने वाला प्रदर्शन उतना ही अधिक स्पष्ट होगा। डिस्प्ले यूनिट के रिजॉल्यूशन को दर्शाने के लिए कॉलम्स तथा पंक्तियों में पिक्सल्स की संख्या का प्रयोग किया जाता है।
विजुअल डिस्प्ले यूनिट क्या होता है – मॉनीटर
विजुअल डिस्प्ले यूनिट – उदाहरण के लिए यदि किसी मॉनीटर स्क्रीन पर होने वाले प्रदर्शन का रिजॉल्यूशन 800 by 600 पिक्सल्स है, तो इसका अर्थ है कि स्क्रीन पर 800 कॉलम्स तथा 600 पंक्तियों के मिलने से प्रदर्शन हो रहा है। एक कॉलम का निर्माण 600 पिक्सल्स के मिलने से होता है और एक पंक्ति का निर्माण 800 पिक्सल्स के मिलने से हो रहा है। प्रारम्भिक काल में डिस्प्ले डिवाइसों पर केवल अक्षरों का ही प्रदर्शन सम्भव था, अर्थात् ये कैरेक्टर एड्रेसेबल (Character Addressable) होती थीं। कम्प्यूटर के सी.पी.यू. द्वारा भेजा गया प्रत्येक अक्षर समान आकार और एक निश्चित नंबर के पिक्सल्स से बना होता था।
ग्राफिक डिस्प्ले की मांग के बढ़ने के साथ-साथ विजुअल डिस्प्ले यूनिट पर होने वाला प्रदर्शन भी सुधरता गया और मॉनीटर स्क्रीन पर टैक्स्ट तथा ग्राफिक का प्रदर्शन समान रूप से होता गया। ग्राफिक आउटपुट को डिस्प्ले करने के लिए प्रयोग की जाने वाली तकनीक को बिट मैपिंग (Bit Mapping) कहा जाता है। इस तकनीक में ग्राफिक का प्रत्येक पिक्सल, ऑपरेटर द्वारा नियन्त्रित होता है और ऑपरेटर किसी भी आकृति की ग्राफिक का प्रदर्शन मॉनीटर स्क्रीन पर करता है।
वीडियो डिस्प्ले यूनिट अर्थात् मॉनीटर में टी.वी. के समरूप कैथोड किरण ट्यूब (Cathode Ray Tube- CRT) का प्रयोग होता है। यह अपेक्षाकृत सस्ती होती है और उत्तम रंगीन आउटपुट प्रस्तुत करने में सक्षम होती है। अब डिस्प्ले डिवाइसों के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई है, इसमें आवेशित रसायनों तथा गैसेज़ को कांच की प्लेट्स के मध्य संयोजित किया जाता है। ये डिस्प्ले डिवाइस हल्की तथा विद्युत की कम खपत करने वाली होती हैं। इन डिस्प्ले डिवाइसों का प्रयोग लैपटॉप कम्प्यूटर्स में किया जाता है तथा इनको फ्लैट-पैनल डिस्प्ले डिवाइस (Flat-Panel Display Device) कहा जाता है।
इस डिवाइस में प्रदर्शन लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (Liquid Crystal Display) तकनीक से होता है। इसका रिजॉल्यूशन CRT तकनीक की अपेक्षा कम होता है, जिससे आउटपुट की स्पष्टता अपेक्षाकृत कम होती है। फ्लैट-पैनल डिस्प्ले के लिए दो अन्य तकनीक भी विकसित की गई हैं-गैस प्लाज्मा डिस्प्ले (GPD) तथा इलैक्ट्रोल्यूमिनेसेन्ट डिस्प्ले (EL)| GPD तथा EL में रिजॉल्यूशन LCD तकनीक की अपेक्षा अधिक अच्छा होता है, परन्तु इसके मंहगे होने के कारण अभी इन तकनीकों का प्रचलन नहीं हो पाया है।
CRT रास्टर ग्राफिक्स के सिद्धान्त पर कार्य करती है। निर्वात स्थापित करने के लिए इसमें से हवा निकाल दी जाती है। इसके पीछे की ओर वाले पतले भाग से इसके सामने के चौड़े भाग पर इलैक्ट्रॉन बीम छोड़ी जाती है। इसके चौड़े भाग में फास्फोरस की कोटिंग होती है, जोकि इलैक्ट्रॉन के टकराने से प्रकाश उत्पन्न करता है। एक इलैक्ट्रॉन बीम के टकराने से एक पिक्सल सक्रिय होता है।
अनेक इलैक्ट्रॉन एक ही बिन्दु पर टकराने से उस स्थान के फास्फोरस को भस्म कर सकते हैं, इसीलिए इलैक्ट्रॉन बीम Z की आकृति में गमन करता है और सम्पूर्ण स्क्रीन के पिक्सल्स को सक्रिय करता है। इलैक्ट्रॉन बीम का 7 की आकृति में गमन रास्टर कहलाता है। एक पिक्सल एक सेकेण्ड में लगभग 30 बार चमकता अर्थात् सक्रिय अर्थात् ऑन होकर निष्क्रिय अर्थात् ऑफ हो जाता है। पिक्सल के सक्रिय तथा निष्क्रिय होना पिक्सल का रिफ्रेश (Refresh) होना कहलाता है। डिजिटल मॉनीटर्स (Digital Monitors) में वोल्टेज की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति ही पिक्सल्स को ऑन तथा ऑफ करती है।
आधुनिक एनालॉग मॉनीटर्स (Analog Monitors) में प्रत्येक पिक्सल की स्पष्टता को इलैक्ट्रॉन बीम से नियन्त्रित किया जा सकता है। विजुअल डिस्प्ले यूनिट – सभी प्रकार की CRTS में रास्टर का प्रयोग किया जाए ऐसा आवश्यक नहीं है। आधुनिक CRTS में वेक्टर ग्राफिक तकनीक, जो कि एनीमेशन, चलचित्र आदि को मॉनीटर स्क्रीन पर प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग की जाती है, को उपयोग में लाया जाता है।