कम्प्यूटर क्या है – इसकी उपयोगिता एवं विशेषताएँ | What is Computer, its Utility and Features
कम्प्यूटर क्या है – वर्तमान युग कम्प्यूटर का ही युग है। कम्प्यूटर शब्द की उत्पत्ति Compute शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है गणना अथवा गिनती करना। इसीलिए सामान्यतः कम्प्यूटर को एक संगणक युक्ति (Calculating Device) के रूप में जाना जाता है। कम्प्यूटर एक स्वचालित एवं असीम प्रयोजनों वाली इलैक्ट्रॉनिक युक्ति (Electronic Device) है, जो एक बार चालू किए जाने के बाद स्वतः ही सक्रिय रहता है साथ ही इससे एक समय में अनेक कार्य किए जा सकते हैं।
कम्प्यूटर एक ऐसी इलैक्ट्रॉनिक युक्ति है जो प्रयोगकर्ता द्वारा दिए गए निर्देशों एवं संदेशों का तुरन्त एवं अक्षरशः पालन करता है। कम्प्यूटर में स्वयं की तार्किक शक्ति एवं स्मृति होती है। मनुष्य की स्मृति तो समय के साथ-साथ धूमिल होती जाती है, परन्तु कम्प्यूटर की स्मृति वैसी ही बनी रहती है, जैसी कि पहले थी। कम्प्यूटर एवं मनुष्य में सबसे बड़ा अन्तर यह है, कि कम्प्यूटर में अपनी बुद्धि एवं विवेक नहीं होता है। इसीलिए कम्प्यूटर प्रयोगकर्ता द्वारा दिए गए निर्देशों को प्रोग्राम के नियन्त्रण द्वारा समझकर उसका पालन करता है, और प्रयोगकर्ता को वांछित परिणाम प्राप्त हो जाते हैं।
इसके लिए कम्प्यूटर को प्रोग्राम की आवश्यकता होती है और यह प्रोग्राम कम्प्यूटर की स्मृति में संचित होता है। कम्प्यूटर की इस स्मृति में कम्प्यूटर प्रोग्राम्स के अतिरिक्त प्राप्त परिणामों का भी भण्डारण किया जा सकता है। ये कम्प्यूटर प्रोग्राम्स कम्प्यूटर को समझ में आने वाली भाषा में तैयार किए जाते हैं।
कम्प्यूटर और मानव | Computer and Human
प्रारम्भ से ही मनुष्य का यह स्वप्न रहा है कि वह कोई ऐसी मशीन अथवा युक्ति का निर्माण करे, जिसकी कार्य-प्रणाली एकदम मनुष्य के समान ही हो। इस स्वप्न के साकार रूप में मनुष्य ने कम्प्यूटर का आविष्कार किया है। जिस प्रकार एक मनुष्य अपनी आंखों से देखकर, कानों से सुनकर एवं हाथ से स्पर्श करके मस्तिष्क को सूचनाएं प्रेषित करता है उसी प्रकार कम्प्यूटर की इनपुट युक्तियों, की-बोर्ड, माउस, माइक आदि के द्वारा सूचनाएं कम्प्यूटर को प्रेषित होती हैं। जिस प्रकार मनुष्य का मस्तिष्क प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है उसी प्रकार कम्प्यूटर का सी.पी.यू. भी प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है।
जिस प्रकार विश्लेषित सूचनाओं से प्राप्त परिणामों को मनुष्य मुंह, हाथ, पैर आदि सामने लाते हैं, उसी प्रकार कम्प्यूटर मॉनीटर, प्रिन्टर तथा स्पीकर्स की सहायता से विश्लेषित सूचनाओं से प्राप्त परिणामों को प्रस्तुत करता है। मनुष्य और कम्प्यूटर में एक असमानता यह है कि मनुष्य का मस्तिष्क तथ्यों से परे भी जा सकता है वह प्रेषित की सूचनाओं से हटकर भी सोच सकता है, वह भावनाओं के वशीभूत होकर भी कोई परिणाम प्रस्तुत कर सकता है, जबकि कम्प्यूटर केवल प्रेषित किए गए तथ्यों पर ही विश्लेषण करके परिणाम प्रस्तुत करता है।
वैसे मनुष्य इसके लिए भी प्रयासरत है कि सर्वव्यापी कम्प्यूटर के नए संसार में मशीनों में बुद्धि होगी वे तथ्यों से परे भी सोच सकेंगी और बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के अपने कार्य को स्वयं ही निष्पादित कर सकेंगी।
कम्प्यूटर के विकास का इतिहास | History of Computer Development
मानव प्राचीन काल से ही जिज्ञासु रहा है और इसी जिज्ञासा के कारण ही मानव प्रकृति अन्य जन्तुओं से पृथक् एवं श्रेष्ठ है। मानव को पाषाण काल से ही गणना की आवश्यकता प्रतीत होने लगी थी। उसे वस्तुओं के आदान-प्रदान का हिसाब रखने की आवश्यकता तो थी, परन्तु ज्ञान की कमी के कारण वे इस कार्य में असमर्थ थे। उस समय उनके पास इस कार्य के केवल एक ही रास्ता था-पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों द्वारा
गणना। वे प्रत्येक वस्तु के लिए पत्थर का एक छोटा टुकड़ा रखा करते थे। इसे गणना की शुरूआत कहा जा सकता है।
इस शुरूआत के पश्चात् मनुष्य ने गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग किया। उंगलियों पर गणनाएं बहुत कम मात्रा में की जा सकती हैं। इसी काल में शिकारियों को यह जानने की इच्छा रहती थी कि उन्होंने कितने जानवरों, पक्षियों आदि का शिकार किया। इसके लिए मानव ने मिट्टी की दीवारों पर पशु-पक्षियों के चित्र बनाने प्रारम्भ कर दिए। इसके उपरान्त 650 बी.सी. में इजिप्ट के निवासियों ने पशु-पक्षियों की आकृतियों को एक विशेष प्रकार के चिन्हों द्वारा गुफाओं में बनाया। ये लोग इन चिन्हों को एक विशेष विधि द्वारा गिनने के काम लाते थे।
इसके बाद मानव ने गिनने के लिए अनेक युक्तियों को खोजा, परन्तु कोई अन्य युक्ति कारगर सिद्ध नहीं हुई। लगभग 600 बी.सी. के दौरान गणना के लिए प्रथम वास्तविक प्रयास चीन में किया गया। यहां पर एक गणन यंत्र ‘अबाकस’ का आविष्कार किया गया। अबाकस एक यांत्रिक गणन यंत्र है, जिसका प्रयोग चीन के बाद जापान, भारत और रूस आदि में होता हुआ सम्पूर्ण विश्व में होने लगा। अबाकस को कम्प्यूटर का सबसे पहला प्रारूप (Model) माना जाता है। यह यंत्र आज भी बच्चों को गिनती सिखाने के काम आता है। अबाकस लकड़ी के आयताकार फ्रेम में तारों में पिरोए गए मोतियों से तैयार किया जाता है।
लकड़ी का यह आयताकार फ्रेम दो भागों, जिनमें इन दोनों भागों में एक भाग छोटा तथा दूसरा बड़ा होता है, में बंटा होता है। छोटा भाग हैवन (Heaven) तथा बड़ा भाग अर्थ (Earth) कहलाता है। इस फ्रेम में बाएं सिरे से दाएं सिरे तक मध्य छड़ को पार करते हुए अनेक समानान्तर तार लगे रहते थे। इन तारों में पांच या उससे अधिक मोती पिरोए जाते थे। चाइनीज़ अबाकस के छोटे भाग की प्रत्येक पंक्ति में दो-दो मोती होते थे जिनमें से प्रत्येक का मान पांच होता था। इसके बड़े भाग में पांच-पांच मोती होते थे जिनमें से प्रत्येक का मान एक होता था। इन मोतियों को मध्य छड़ के समीप सरकाकर वांछित संख्या का प्रदर्शन किया जाता था।
ऊपर से नीचे की ओर प्रत्येक तार क्रमशः इकाई, दहाई, सैंकड़ा, हजार, दस हजार तथा लाख प्रदर्शित करता है। इन मनकों को सरकाकर जोड़, घटाना, गुणा अथवा भाग की क्रियाएं की जाती थीं। चीन में अबाकस का प्रयोग आज भी किया जाता है। अनेक विद्यार्थी Calculator की अपेक्षा अबाकस द्वारा गणनाएं करना सरल मानते हैं और प्रतियोगिताओं में अबाकस द्वारा तीव्र गति से गणना करके परिणाम शीघ्र प्राप्त किए जा सकते हैं।
जापान में बनाया गया अबाकस चीनी अबाकस से पृथक् था। इसमें मध्य छड़ के बाईं ओर एक ही मोती होता था और शेष पांच मोती छड़ के दाईं ओर होते थे। कुछ समय के उपरान्त रूसी अबाकस का निर्माण हुआ। यह चीनी और जापानी दोनों अबाकसों से भिन्न था। इसके आयताकार फ्रेम में मध्य छड़ नहीं थी और प्रत्येक पंक्ति में दस-दस मोती होते थे। सन् 1617 में स्कॉट के गणितज्ञ सर जॉन नेपियर ने एक गणन युक्ति का आविष्कार किया, जिसे नेपियर बोन के नाम से जाना जाता था।
इस युक्ति में हड्डी से बनी दो छड़ें होती हैं। ये छड़ें एक-दूसरे से जुड़ जाती थीं। इस युक्ति द्वारा जोड़, घटाना, गुणा अथवा भाग बड़ी सरलता से किया जा सकता था। जर्मन के विलियन ऑटरेड ने सन् 1620 में स्लाइड रूल नामक गणन यंत्र का आविष्कार किया, जो कि लघुगणक के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
प्रथम यांत्रिक गणन यंत्र का आविष्कार सन् 1642 में फ्रांस के निवासी उन्नीस वर्ष के नवयुवक ब्लेज पास्कल ने किया था। इस गणन यंत्र का नाम पास्कलीन रखा गया। इस यांत्रिक गणन यंत्र में गियर्स, पहिए तथा डिस्क्स होती थीं। प्रत्येक पहिए पर शून्य से नौ तक के अंक लिखे होते थे। जब एक पहिया एक पूरा चक्कर घूम जाता था, तब दूसरा पहिया एक स्थान खिसक जाता था अर्थात् इकाई के पहिए के दस बार घूमने पर दहाई का पहिया एक बार घूमता था। इस गणन यंत्र से जोड़ने का कार्य ही किया जा सकता था।
सन् 1671 में जर्मनी के बैरॉन गॉटफ्रीड विलहेल्म वॉन लाइनिज़ ने पास्कलीन में डिस्क्स के स्थान पर दांतेदार गरारियों का प्रयोग किया गया। साथ इसमें कुछ संशोधन भी किए, जिनके फलस्वरूप इससे गुणा तथा भाग की क्रियाएं भी सरलता से की जा सकती थीं। इसके उपरान्त जर्मनी के गणितज्ञ कुम्मेर से एक ऐसी मशीन का विकास किया, जो कितनी भी संख्याओं को किसी भी क्रम में जोड़ अथवा घटा सकती थी। यह मशीन बहुत बड़े पैमाने पर बनाई एवं बेची गयीं, जो बहुत ही लोकप्रिय भी हुईं।
ब्रिटिश गणितज्ञ एवं आविष्कारक चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage), जो कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर थे, ने पहली बार सम्पूर्ण कम्प्यूटर की कल्पना की थी और इस कल्पना को साकार रूप देने के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन और धन अर्पण कर दिया। सन् 1822 में वे एक ऐसी मशीन का कार्यकारी प्रारूप (Working Model) विकसित करने में सफल हो गए, जो कि बीजगणितीय समीकरणों और गणितीय तालिकाओं का दशमलव के तीसरे स्थान तक का शुद्ध मान ज्ञात कर सकती थी। इस मशीन को डिफ्रेंस इंजन (Difference Engine) नाम दिया गया।
इसके बाद उन्होंने इसे और अधिक बड़ा और शक्तिशाली बनाने पर कार्य करना प्रारम्भ किया। अब वे इसे इस प्रकार विकसित करना चाह रहे थे कि गणनाओं का दशमलव के बीसवें स्थान तक शुद्ध परिणाम प्राप्त हो सके। सन् 1842 में उन्होंने संसार के समक्ष एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) की एक नई अवधारणा को प्रस्तुत किया। इसमें आधुनिक कम्प्यूटर के सभी गुण स्थित थे। इसमें इनपुट, प्रोसेस यूनिट, कन्ट्रोल यूनिट, स्मृति तथा आउटपुट की व्यवस्था थी।
चार्ल्स बैबेज एनालिटिकल इंजन के कार्यकारी प्रारूप को देख नहीं पाए। इसके पूरा होने से पूर्व ही उनका देहावसान हो गया था। कम्प्यूटर के क्षेत्र में इस अद्वितीय योगदान के कारण ही चार्ल्स बैबेज को आधुनिक डिजिटल कम्प्यूटर का जनक (Father of Modern Digital Computer) कहा जाता है।
चार्ल्स बैबेज के अधूरे कार्य को उनकी सहयोगिनी एडा ऑगस्ता (Ada Augusta) ने आगे बढ़ाया। एडा ऑगस्ता ने पहली बार एनालिटिकल इंजन में निर्देशों (Instructions) को संग्रहीत किया और इन निर्देशों के अनुरूप एनालिटिकल इंजन से कार्य किया गया, इसीलिए उन्हें विश्व के प्रथम प्रोग्रामर के रूप में जाना गया है। चार्ल्स बैबेज की सहायता से एडा ने बायनरी संख्या पद्धति का विकास किया। एडा के इस कार्य का सम्मान करते हुए अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा अपने यहां प्रयोग किए जाने वाले कम्प्यूटर्स की विशेष भाषा का नाम एडा रखा।
चार्ल्स बैबेज के एनालिटिकल इंजन की परिकल्पना के लगभग पचास वर्षों के उपरान्त अमेरिका के वैज्ञानिक हर्मन होलेरिथ (Herman Hollerith), जो कि अमेरिकन जनसंख्या ब्यूरो में कार्य करते थे, ने इलैक्ट्रिकल टेबुलेटिंग मशीन (Electrical Tabulating Machine) का विकास किया।
इस मशीन में पंच कार्ड्स की सहायता से आंकड़ों को संग्रहीत किया जाता था। इन पंच कार्ड्स को एक-एक करके टेबुलेटिंग मशीन पर रखा जाता था और इस मशीन पर लगी सुईंयां इन कार्ड्स से आंकड़ों को पढ़ने का कार्य करती थीं। जब ये सुईंयां कार्ड पर बने छिद्र के कारण आर-पार हो जाती थीं, तो वे कार्ड के नीचे रखे पारे को छू जाती थीं और विद्युत परिपथ पूर्ण हो जाता था। हर्मन होलेरिथ की इस मशीन की सहायता से जनगणना का कार्य, जो कि लगभग पांच वर्षों तक चलना था, केवल दो वर्षों में ही पूर्ण हो गया था।
सन् 1886 में होलेरिथ ने इन मशीनों के व्यापार के लिए टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी (Tabulating Machine Company) नामक एक कम्पनी बनाई। सन् 1911 में इस कम्पनी के साथ कई अन्य कम्पनियां भी जुड़ गईं। होलेरिथ ने सभी कम्पनियों के संयुक्त समूह को एक नया नाम दिया कम्प्यूटर टेबुलेटिंग रिकॉर्डिंग कम्पनी (Computer Tabulating Recording Company)|
रूस सन् 1924 में इस कम्पनी को एक नया नाम दिया गया इन्टरनेशनल बिजिनेस मशीन कॉरपोरेशन (आईबीएम) [International Business Machine Corporation (IBM)]| सन् 1930 के समाप्त होते-होते विश्व के पंच कार्ड उपकरणों के बाजार के 80% भाग पर IBM का अधिकार हो चुका था। IBM के कारण ही उस समय तक प्रचलित यांत्रिक उपकरणों (Mechanical Equipments) को वैद्युत-यांत्रिक उपकरणों (Electro- Mechanical Equipments) में परिवर्तित कर दिए गए।
बीसवीं सदी के तीसरे और चौथे दशकों में विभिन्न देशों, जर्मनी, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, आदि में विभिन्न प्रकार के कम्प्यूटर्स को बनाने की मानो होड़-सी लग गई। इन दशकों में कम्प्यूटर तकनीक में असामान्य रूप से प्रगति हुई।
सन् 1948 में हारवर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के वैज्ञानिक हावर्ड ए. आइकेन (Howard A. Aiken) ने IBM के साथ मिलकर ऑटोमेटिक स्वीकेंस कन्ट्रोल्ड कैलकुलेटर के नाम से पहले इलैक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर को विकसित करने में सफलता प्राप्त की। इसे मार्क-प्रथम जैसा सम्मानित नाम दिया गया। अट्ठारह मीटर लम्बे और तीन मीटर ऊंचे इस विशालकाय कम्प्यूटर में 800 किलोमीटर लम्बे तार हजारों की संख्या में वैद्युतचुम्बकीय रिलेज़ थीं, सैंकड़ों इलैक्ट्रॉनिक ट्यूब्स थी और अनेक अन्य घटक थे।
अह कम्प्यूटर 23 अंकों वाली दो संख्याओं को गुणा करके गुणनफल मात्र साढ़े चार सेकेण्ड में प्रस्तुत कर सकता था। यह कम्प्यूटर कार्य करते समय शोर बहुत करता था और बहुत गर्म भी हो जाया करता था। सन् 1946 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पेंसवालिया यूनिवर्सिटी (University of Pennsyvalia) के मूरी स्कूल ऑफ इन्जीनियरिंग (Moore School of Engineering) में इलेक्ट्रॉनिक न्यूमेरिकल इन्टीग्रेटर एण्ड कैलकुलेटर (ENIAC) विकसित किया गया। यह मार्क प्रथम से अधिक तीव्र गति से कार्य करने वाली मशीन थी।
यह मशीन एक सेकेण्ड में 5000 योग तथा 350 गुणा की क्रियाएं कर सकती थी। इसमें स्मृति भण्डारण की व्यवस्था न होने के कारण कुछ कम्प्यूटर वैज्ञानिक इसे कम्प्यूटर कम और कैलकुलेटर अधिक मानते हैं। इसके उपरान्त अनेक वृहत्काय कम्प्यूटर बनाए गए, जो कि बायनरी पद्धति पर कार्य करते थे और इनमें स्मृति भण्डारण की भी व्यवस्था थी। इनके कुछ उदाहरण हैं-EDVAC, EDSAC, UNIVAC-I आदि।